शक
शक
किसी भी औरत पर
शक किया जाता है
समाज भी औरतपर
उंगलीयाँ उठाता है
हंसकर बात क्या करे
ताने उसे सुनने पडते है
घर के बाहर कदम रखते ही
भूखी आँखें टूट पडती है
ऐसी ही होगी वो
हर कोई बात करता है
पीठ पिछे होते ही
ताने मार देता है
चाहत होती है पाने की
औरत को गुलाम समझते हैं
शक के दायरे में बस वही
अकेली खड़ी रह जाती है।