तेरी यादें
तेरी यादें
"हर्फ़ पिघल रहें हैं,
लफ़्ज़ नम से हो रहें हैं,
ग़मज़दा खुशी हो रही है तो
अश्क मुस्कुराहट को भिगो रहें हैं,
,किताब-ए-ज़िन्दगी के पन्ने
जाने क्यों बिखर रहें हैं ?
जो मुस्कुरायें तो अश्क
आँखों से छलक रहें हैं,
मुस्कुराते वो लफ़्ज़ सारे
आजकल खार से चुभ रहें हैं।
ख़ामोशियाँ क़हक़हों
पर पहरा दे रही हैं,
तन्हाईयों में तेरी यादें कानों में
सरगोशियां कर रहीं हैं,
मौसम ये बारिश का तो नहीं
फिर भी जाने क्यों सड़कें मेरे
शहर की भीगी-भीगी सी लग रहीं हैं।"

