तेरी नज़र
तेरी नज़र
बिन कहे बहुत कुछ कह जाती है
जब झुके ये तो लगता है शरमाती है
जब गिरे मुझ पर तो
मेरा सब कुछ ले जाती है
जब लगे डूबी - डूबी सी तो लगता है
इसमें मेरी सारी दुनिया समाती है
ये तेरी नज़र ही तो है
जो मुझमे बस जाती है
जब ये हो खफ़ा - खफ़ा सी हमसे
ना जाने कितनी बिजलियाँ हम पर गिराती है
लगता है हर जुल्मों - सितम का पहाड़
हम पर तोड़ जाती है
मन ही मन रोते है
ना रात भर सोते है
ये सोच - सोच कर परेशान हो जाते है
रब से कहते है की बता मुझको
हम तेरी नज़र का ऐसा कोनसा गुनाह कर बैठे है
जब भी ये तो खोई - खोई सी लगती है
मेरी तक़दीर ही सोई सी लगती है
तब भूल जाता हूँ मैं अपनी काव्य - शैली
लगने लगता है खुद दिमाग है खाली
फिर पूछता हूँ तुझसे क्यों छीन ली मेरी खुशहाली
बदलें में दे डाली बदहाली ही बदहाली
ये तो तू भी जाने और मैं भी कि
हर वक़्त तेरा ये बंदा तेरी नज़र की रहमत तुझसे मांगे
जब होती मेरी हर सुबह
तू मुझमे इशारों ही इशारों में झाकतां है
ना जाने मुझमे ऐसा क्या ताकता है
मैं तो माँगू तुझसे तेरे प्यार दरिया में रास्ता
लगता है तेरा - मेरा कई जन्मों का वास्ता है
तू ना हो मेरे पास तो मेरा मन बड़ा भरमाता है
ना जाने क्या - क्या बुरा - भला मनाता है
तू तो मेरे जीवन का भाग्यविधाता
तेरी नज़र से तो ही मेरा हर काम बन जाता है
ये ही तो है जो हर बुरी नज़र से हमें बचाता है
हर रात्रि तुझसे ये विनिती कर सोते है
भूले से भी भूल हो ना उसकी
जिसके प्रेम में मेरा बसेरा
अब ना हो उसके बिन मेरा सबेरा
मेरे बिन उसका सबेरा
ना हो मेरे मन में क्या तेरा क्या मेरा
जब लिखने कि ताकत मिल ही गई है
वो सब कुछ मुझसे लिखवा डाल
जो मिटाये इस जगत का अँधेरा
जो मिटाये इस जगत का अँधेरा
तेरी नज़र ही तो है
जिसने मेरा मन फेरा
मेरा मन फेरा।