शक्ति का दूसरा नाम : बेटियाँ
शक्ति का दूसरा नाम : बेटियाँ
बेटियाँ हमारे घरों में जब जन्म लेती हैं,
तो घर में किलकारियाँ खिल जाती हैं।
रोशन हो जाती हैं घर की कलियाँ ,
उनके आने से घर में चार चाँद नहीं
अपितु चौबीस चाँद लग जाती है।
ऊपरी मन से ही सही लेकिन अक्सर
अनायास ही हमारे मुख से निकल ही जाता है,
अहो भाग्य ! घर में लक्ष्मी आई हैं।
उस समय हम ये कभी नहीं बोलते की अहो भाग्य !
घर में दुर्गा या शक्ति आई हैं।
मुझे उनको लक्ष्मी का अवतार कहने में कोई आपत्ति नहीं !
क्योंकि लक्ष्मी तो धन- धान्य से परिपूर्ण होती हैं,
जो निर्धनता का नाश करती हैं।
पर हमारी जिह्वा से एक बार भी उनके संबोधन में
दुर्गा या शक्ति का नाम क्यों नहीं उच्चरित होती ?
आखिर धन- संपदा को भी सुरक्षित
संजोने के लिए तो शक्ति की जरूरत होती है ,
जो आततायियों एवं दुराचारियों से उनकी रक्षा करे।
यकीन मानिए जिस दिन से हम उन बेटियों को लक्ष्मी के साथ-साथ
दुर्गा और शक्ति का भी अवतार मान लेंगे,
उनके मन में ये बात बचपन से ही बिठा देंगे,
उनकी सुरक्षा की चिंता से हम निश्चिंत हो जायेंगे।
वे आत्मरक्षा के गुर किसी कराटे की
पाठशाला में नहीं सिख सकती,
इसके पहले उनके अंत: करण में
निर्भीकता की भावना भरनी होगी,
तभी वो निर्भीक, निडर, बेखौफ घूम सकेंगी,
अपनी उड़ान उड़ सकेंगी।
