क्या हम स्वतंत्र हैं?
क्या हम स्वतंत्र हैं?
सच में, सही रूप में, सही मायने में,
शायद नहीं, हम स्वतंत्र हैं, माहिर हैं,
मनमानी करने में, तोड़फोड़ करने में,
नुकसान करने में, पराया हड़पने में,
स्व छुपाने, जोर आजमायश करने में।
हैरानी है, सारे संस्कार कहाँ चले जाते ,
कुछ लोग देश अहित कदम उठाते,
देवभूमि भारत की अपनी पहचान है ,
विभिन्नता में एकता इसका आह्वान है,
फिर क्यों कुछ लोग ही बदनाम हैं।
चंद लोग , चंद सिक्कों के लिए बिकते,
बेचते ईमान , पाप व नित दुष्कर्म करते ,
वीरों की कुर्बानी भूल, देश का कलंक बनते ,
अपनी ही बहन बेटियों की इज्ज़त नोचते
सारे संस्कार जाने कहाँ धरे ही रह जाते।
कहते हैं जब जागो तभी सवेरा,
अभी संभल जाओ कुशल बहुतेरा,
माँ भारती के सच्चे सपूत बन जाओ,
सत्कर्मों से देश का गौरवगान बढ़ाओ,
अपनी आजादी को सार्थक बनाओ ।