मेरी पहली मंज़िल
मेरी पहली मंज़िल
वह जो मेरी वीणा की रागिनी बन जाती,
मेरी संगीत की सरगम बन जाती,
मेरी अल्फ़ाजों की आवाज़ बन जाती,
मेरी सुकून की साँस बन जाती
वह मेरी स्वप्न नहीं हकीक़त है।
वही तो है मेरी आशियां,
वही तो है फ़ितरत मेरी।
वही तो एक है जो मेरी हर मर्ज की मरहम बन जाती है।
मेरी नाउम्मीदी की उम्मीद भी तो वही है।
वही तो है निराशा में भी आश की राह दिखानेवाली ,
मेरी हर पल हौसला बढ़ाने वाली,
मेरी जीवनसंगिनी बनने वाली वही तो है,
वही तो है हर सफर में साथ निभानेवाली मेरी हमसफ़र।
मेरे जीने का जरिया भी तो वही है।
वो कौन है ?
वो सपनों की कोई परी नहीं है ?
वो हकीक़त में मेरी परी है।
वो नटखट भी है,शरारती भी है।
मगर दिल के अंदर उसकी शराफ़त की
शक्ल मुझे साफ झलकती है।
वही तो है जिसकी मुस्कान पाकर
मैं निराशा के क्षणों में भी मुस्कराता हूँ।
वह मेरी दिल की तहकीकात की तलाश है।
वही तो मंज़िल की राह में मिली पहली मंज़िल है।
अब उसी के साथ ही तो हमें मंज़िलें पाना है,
हमें सूखे हुए अधरों पर साथ मिलकर मिठास लाना है।
हाँ ! वह कोई सपनों की परी नहीं !
वह मेरी हकीक़त की परी है।
जिसे मैंने फरिश्ते के रूप में पाया है।
मंजिल है वो मेरी, मेरी पहली मंज़िल।