माँ और मेरी मोहब्बत
माँ और मेरी मोहब्बत
माँ की हो जिसके सिर पे हाथ,
और मोहब्बत की साथ में छाया
तो फिर इस दुनिया में उसका
कौन बिगाड़ कुछ पाया !
भले ही लोग लगे हो हमें गिराने में,
जोर- शोर से जुटे हो हमें नीचा दिखाने में !
उसकी उड़ान को कौन रोक सकता है ?
जिसके हाथ में मजबूत हाथ और सिर पे आशीर्वाद की साया ,
भला उसको बढ़ने से इस दुनिया में कौन है रोक पाया ?
उसकी जड़ को कौन भला है उखाड़ पाया ?
जिसका घर स्वंय आसमाँ ने ही खुद ने है बसाया।
और मेरी माँ ने मुझे बसना इसमें सिखाया
जबतक रहेगी साथ मेरे इन दोनों की साया,
तपती धूप में भी शीतलता महसूस करेगी मेरी काया।
चाहे दुनिया हमें मिटाने के लिए छल- छदम् का ले सहारा,
या दिखाये अपनी प्रपंच की माया !
हमने आँधियों में ही तो भरकर उड़ान मंज़िल को है पाया।
अभावों में भी मैं अपने कर्त्तव्यपथ पे सदैव कदम है बढ़ाया,
कुछ अच्छा कर गुजरने की जुनून ही ने मुझे अबतक है टिकाया।
लाख किया गिराने की कोशिश लोगों ने
मगर कोई भी एक कदम भी डिगा न पाया !
जब ममत्व और मोहब्बत का हरपल मिले छाया ,
तो दुनिया भला क्या ही उसका बिगाड़ कुछ पाया ?