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Kumar Pranesh

Tragedy

3  

Kumar Pranesh

Tragedy

तेरी क्षति को पूर्ण करने में..

तेरी क्षति को पूर्ण करने में..

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खंडित आँखों से क्या देखें,

क्या बोले मुक होठों से,

दिल की गति भी मध्यम

पड़ गयी,

खुद धड़कन के चोटों से,

शब्दों से निशब्द हुआ,

और भावों से है मन हारा,

तेरी क्षति को पूर्ण करने में,

अक्षम है यह जग सारा!


सारे रिश्ते सच्चे निकले,

एक तू ही निष्ठुर झूठी निकली,

सात जन्मों का बंधन मेरा,

बीच में हीं टूटी निकली,

जीवन के इस पथ पे अकेला,

बन राही मैं थका हारा,

तेरी क्षति को पूर्ण करने में,

अक्षम है यह जग सारा!


रातें सूनी बातें सूनी,

सूना हर नज़ारा है,

तुम बिन मेरा आंगन सूना,

सूना यह जग सारा है,

तुझ से सुशोभित यह घर मेरा,

तुम बिन लगता है कारा,

तेरी क्षति को पूर्ण करने में,

अक्षम है यह जग सारा!


विचलित होता मन यह मेरा,

कितना घोर अंधेरा है,

प्रीत दीप की बिछड़ गइ,

अब कहाँ मेरा सबेरा है,

कभी निहारूं विकल विकल मैं,

कभी आसमां का तारा,

तेरी क्षति को पूर्ण करने में,

अक्षम है यह जग सारा!


कदम कदम पर तेरी आहट,

मुझ को मुझसे दूर करे,

शब-ए-कयामत होगी इनायत,

यही जीने को मजबूर करे,

तुम्हें जीवित रख हर जर्रे में,

वक़्त ने मुझ को है मारा,

तेरी क्षति को पूर्ण करने में,

अक्षम है यह जग सारा!



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