सुबह खुश है
सुबह खुश है
सुबह खुश है
आशा के अंकुरण से
ओस की बूंदों ने
सींच दिया है उसे।
जैसे उदासी के जंगल मे
अनहोनी सा कुछ है।
प्रेम की देवी
आँचल से हवा दे रही हैं
मन की दरारें भर रही हैं।
आदमी ने अपने हथियार
उछाल दिये हैं
रेत हुये समुन्दर में।
सच मे आज कुछ दिलचस्प है
चाँद उतर आया है धरती पर।
सुबह में समायी हुई रात
उतार रही है
रौशनी का लिहाफ।
पहली बार
सुबह,सुबह सी लग रही है
और कोई कई
शताब्दियों से खोया हुआ सपना
सच होता दिख रहा है और
आशा अंकुरित हो रही है।
चलो गायें
कोई प्यारा सा गीत
माँ के सुर में।