स्त्री
स्त्री
स्त्री तेरा इतिहास भी विचित्र है,
नहीं क्या तेरा सम्मान का हक है,
नारी की है वो गाथा,
जिसको हर कोई चटकारे,
लेकर सुनना चाहता।
पर क्यों कोई समझ नहीं पाता,
उसकी भावनाओं को है,
मज़ाक में उड़ाता,
इतिहास हमारा है बताता,
हर मौके पर उसकी,
सत्यता को परखा जाता।
जीवन उसका कर्तव्यों को निष्ठा से,
निर्वाह करने में बीत जाता,
लेकिन फिर भी उसको दोयम,
दर्जे की वस्तु समझा जाता।
देवी दुर्गा की है जिसे हम संज्ञा देते,
भूखी नजरों से है देखकर,
उसे फिर गंदा कर देते,
लगातार हर मोड़ पे शोषण करते,
जीवन मानसिक प्रताड़ना से भर देते।
सृष्टि ने जो की है इतनी सुंदर रचना,
उसका विनाश करना हम,
समझ रहे हैं कर्तव्य अपना,
कब तक ये खेला चलेगा,
कब ये इतिहास बदलेगा।
नारी को मत इतना सताओ,
दुर्गा-काली का रुप,
धारण करे वो मत उकसाओ,
बस बहुत हुआ ये गंदा खेला,
बदलना पढे़गा अपनी सोच का रेला,
स्त्री की अस्मत को मत लुटाओ,
उसको है उसका सम्मान दिलाओ।
