सरहद का सिपाही
सरहद का सिपाही


मैं हूँ सरहदों का सिपाही,
सरहद पर ही रहता हूँ।
सर्दी, गर्मी हो या बारिश,
कर्तव्य पथ पर चलता हूँ।।
मैं एक ऐसा पथिक हूँ,
जो कभी भी न थकता हूँ।
निज देश की रक्षा में,
भूख, प्यास भी भूल हूँ।।
मैं शांति का अग्रदूत भी,
और शांति का रक्षक हूँ।
किसी दुश्मन को भी,
आँख न उठाने दूँगा।
देश की रक्षा में भी,
हँस हँस हर बलिदान दूँगा।।
मातृभूमि के कर्ज हैं मुझ पर,
कुछ अंश ही चुकता हूँ।
माँ भारती तेरे आँचल में ही,
मैं सुकून पाता हूँ।।
तू निज जननी से बढ़कर,
हम सब की माता हैं।
तेरे सिवा न हम भक्तों को,
न कुछ और सुहाता है।।
तेरे चरणों में ही बैठे,
हम सेवक तुम्हारे है।
तेरी ही रक्षा में हम तो,
शीश नवाने वाले हैं।।
आँचल की छाँव ही तेरा,
एकमात्र विश्राम स्थली है।
तेरा ही हर पथ तो अपना,
एकमात्र कार्यस्थली है।।
जय हिंद का नारा हम लगा कर,
नित नित बढ़ते जाते हैं।
तेरे ही चरणों में माता,
आज शीश नवाते हैं।।
जय हिंद