दुश्मनों की औकात कहाँ?
दुश्मनों की औकात कहाँ?
तुम हो तो ही हम है सुरक्षित,
तुझसे नित्य नया सवेरा है,
तुम जागो तो हम है सोते,
तुझसे जन जन का बसेरा है,
ऋणी रहेंगे सदैव तुम्हारे,
तुमसे हीं चमन की सौगात यहाँ,
देख सके जो आँख उठा के,
है दुश्मनों की औकात कहाँ !
पदचाप तुम्हारे सरहद पर,
जब गर्जन सिहं सा करतें है,
थर्राते तब दुश्मन सारे,
गिदड़ की भांति डरते है,
तेरी आँखों की रातजगा से,
मिलता हमें किरण प्रभात यहाँ,
देख सके जो आँख उठा के,
है दुश्मनों की औकात कहाँ !
तेरे शौर्य के दर्शन से,
वंचित धरती आकाश नहीं,
तेरे ओज के तेज़ समक्ष,
टिक पाये सूर्य प्रकाश नहीं,
तेरी गाथा को प्राणेश नमन करे,
तुझसे हीं अमन की बात यहाँ,
देख सके जो आँख उठा के,
है दुश्मनों की औकात कहाँ !