भारतीय संविधान : एक जीवंत दस्तावेज़
भारतीय संविधान : एक जीवंत दस्तावेज़
भारतीय संविधान है एक सजीव, सवाक् जीवंत दस्तावेज़ ।
इसमें उल्लिखित है मौलिक अधिकारों के साथ- साथ मौलिक कर्तव्यों का भी समावेश।
अंशत: यह कठोर है ,अंशत: है यह लचीला ।
कोई ऐसा तबका नहीं जिसे इसे सम्मानपूर्वक मानने का एक आधार भी न हो मिला !
समय के अनुरूप खुद को समाज के ढाँचे में ढलने वाला है, हमारा संविधान।
यही इसकी अहम खासियत है जो इसे बनाता है सबसे महान ।
इसके सामने नीरस और फीका दिखता कथित विधि का भी विधान !
हमारा संविधान सिर्फ नियम- कानूनों का पिटारा नहीं !
यह बेआवाज़ों की आवाज़ ,बेसहारों का सहारा
और बेकसूरों का रखवाला है ।
यह शासन कैसा हो ? के साथ - साथ कैसे चले?
इसका भी करता है हर संभव बखान ।
आत्मसात करें हम इसमें वर्णित प्रावधान,
आओ निष्ठापूर्वक नमन करें इस पवित्र- पावन ग्रंथ को ।
प्रकट करें हम इसके प्रति श्रद्धा- भाव ,
अपने जीवन में अपनाकर इसे ;यही होगा इसके प्रति हमारा सच्चा सम्मान।
यह संवैधानिक उपचारों का बोध कराता ,
जिसके सहारे अपने मौलिक अधिकार के हनन होने पर
कोई भी खटखटा सकता है सीधे सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय का दरवाजा ।
अपने हित में हक हासिल करने के साथ - साथ
यह हमारी राष्ट्र के प्रति अपनी कर्तव्य भी है बताता ।
सच में है यह विधि के विधान से भी सर्वश्रेष्ठ।
हमारा संविधान है सचमुच जीवंत दस्तावेज़।।
