जिस मिट्टी में बड़ा हुआ मैं
जिस मिट्टी में बड़ा हुआ मैं
जिस चमन में खिला हूँ मैं
उसी चमन में मुरझाऊँ
जिस मिट्टी में बड़ा हुआ मैं
उसी में कल को मिल जाऊँ।
उत्तर में खड़ा हिमालय पर्वत
दक्षिण में हिन्द शान बढ़ाता है
कल-कल करता नीर गंगा का
हमें भक्ति का पाठ पढ़ाता है।
ऐसी अनूठी संस्कृति का
भला मैं क्या अब गुण गाऊँ
जिस मिट्टी में बड़ा हुआ मैं
उसी में कल को मिल जाऊँ।
गीता, कुरान और रामायण से
यहाँ पवित्र ग्रन्थ भी लिखे गये
एक बार ही पढ़कर जिनको
जीवन का उद्देश्य समझ गये।
ऐसे पवित्र ग्रंथों को मैं
लब्जों में कैसे बतलाऊँ
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जिस मिट्टी में बड़ा हुआ मैं
उसी में कल को मिल जाऊँ।
कभी अंग्रेजों से भिड़े वीर शहीद
कभी कारगिल में रक्त बहाया है
तब हमने जाकर आजदी का
ये जश्न-ए मकाम पाया है।
उनके वीर पराक्रम को हम
कैसे सबको बतलाऊं
जिस मिट्टी में बड़ा हुआ मैं
उसी में कल को मिल जाऊँ।
केसरिया, सफेद और हरा रंग
आजादी की गाथा गाते हैं
इस मिट्टी में मिला लहू जिनका
हमें उनकी याद दिलाते हैं।
शहीदों की वीर शहादत पर
मैं उनको दिल से शीश झुकाऊँ
जिस मिट्टी में बड़ा हुआ मैं
उसी में कल को मिल जाऊँ।