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निशान्त मिश्र

Abstract

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निशान्त मिश्र

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यथार्थ

यथार्थ

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अनुचर, अनुगामी बन कर,अब और नहीं है जीना,

स्वामी बनकर इच्छाओं का, अधिमानों को छूना

स्वप्नलोक ने ही, यथार्थ की ताकत को छीना

पछतावे के आंसू मुझको, और नहीं अब पीना


अनुचर, अनुगामी बन कर,अब और नहीं है जीना


कालचक्र को तोड़, समय की मनमर्ज़ी झुठलाना,

मोड़ पवन को, झुका गगन को, क़दमों में है लाना

आशाओं के पर्वत पर अब, छद्म कहीं भी हो ना,

अनुमानों की छाती पर, मेहनत का बहे पसीना,


अनुचर, अनुगामी बन कर,अब और नहीं है जीना


अभिमानों के कंकालों से, है बदला लेना,

अपमानों के दंशों का, प्रतिभा प्रत्युत्तर देना,

इतराते तिनकों को है अब, धूलधूसरित करना,

कर्म – खड्ग से भाग्य रक्ष का, चाक करूं अब सीना


अनुचर, अनुगामी बन कर,अब और नहीं है जीना।


..... निशांत मिश्र


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