कर्म – खड्ग से भाग्य रक्ष का, चाक करूं अब सीना अनुचर, अनुगामी बन कर,अब और नहीं है जीना कर्म – खड्ग से भाग्य रक्ष का, चाक करूं अब सीना अनुचर, अनुगामी बन कर,अब और नही...
संसार की सार्थकता आनंद में है सामंजस्य में है। संसार की सार्थकता आनंद में है सामंजस्य में है।