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निशान्त मिश्र

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निशान्त मिश्र

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प्रकृति और पालक

प्रकृति और पालक

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गया प्रभात, गई दुपहरिया

हुई सुबह से शाम

मन तू भजेगा कब, हरि नाम

मन तू भजेगा कब, हरि नाम।


पुष्पों से, वृंदित विटपों पर-२

चंचुभृतों का कलरव सुनकर

जागे रवि, दिशि, ग्राम

मन तू भजेगा कब, हरि नाम

मन तू भजेगा कब, हरि नाम।


सुरभित पवन, है गुंजित उपवन-२

किंजल्कों का उत्फुल्लित मन

कर ले इन्हें प्रणाम

मन तू भजेगा कब, हरि नाम

मन तू भजेगा कब, हरि नाम।


उषा रश्मि, रवि रथ पर चलकर-२

कोटि पञ्चदश महानल्व पग

स्वर्णिम धरणी धाम

मन तू भजेगा कब, हरि नाम

मन तू भजेगा कब, हरि नाम।


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