प्रकृति और पालक
प्रकृति और पालक
गया प्रभात, गई दुपहरिया
हुई सुबह से शाम
मन तू भजेगा कब, हरि नाम
मन तू भजेगा कब, हरि नाम।
पुष्पों से, वृंदित विटपों पर-२
चंचुभृतों का कलरव सुनकर
जागे रवि, दिशि, ग्राम
मन तू भजेगा कब, हरि नाम
मन तू भजेगा कब, हरि नाम।
सुरभित पवन, है गुंजित उपवन-२
किंजल्कों का उत्फुल्लित मन
कर ले इन्हें प्रणाम
मन तू भजेगा कब, हरि नाम
मन तू भजेगा कब, हरि नाम।
उषा रश्मि, रवि रथ पर चलकर-२
कोटि पञ्चदश महानल्व पग
स्वर्णिम धरणी धाम
मन तू भजेगा कब, हरि नाम
मन तू भजेगा कब, हरि नाम।