मित्रता का दीप
मित्रता का दीप
विचार नहीं मिल पाये
राहें अलग दिखने लगीं !
सहयोग का पता नहीं
नीव मानों हिलने लगीं !
एहसास नहीं वर्षों तक
दोनों हम सब भूल गए !
जन्म दिनों में आकर
गुलदस्तों को छोड़ गए !
सुनते ही नहीं कोई बातें
कहना तो अपनी दूर रही !
पढता है कौन यहाँ यारों
लिखने की बात तो दूर रही !
राजनीति के युद्धों में हम
बेकार के उलझे रहते हैं !
भाषा समुदायों में पड़कर
तकरार हमेशा करते हैं !
ना सोचे हमें कोई हमको
दूर निगाहों से देखता है !
हमारी गतिविधिओं पर सब
कोई पेनी दृष्टि रखता है !
सजग सफल बनना है तो
दिल से हमको जुड़ना होगा !
अपने मित्रों के मनमंदिर में
प्रेम का दीप जलना होगा !