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कुरुक्षेत्र - संक्षिप्त

कुरुक्षेत्र - संक्षिप्त

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भीष्म प्रतिज्ञा अडिग रही,

उनके हर कार्य में कारण था।

दुर्योधन जैसे कामी के लिए,

 ये जीवांत उदाहरण था।।


हस्तिनापुर की हिफाज़त की खातिर,

उनका सर्वस्व न्योछावर था।

कुरुक्षेत्र की माटी लाल हुई,

शकुनि इसका बड़ा कारण था।।


पासा फेंकने की चाल को,

शकुनि अच्छे से सीखा था।

पांडवों के साथ वही हुआ,

जो उनकी नियति में लिखा था।।


राज - पाठ सब लगा दांव पर,

अब पांचाली का सौदा होना था।

अगली चाल में रूह काँप गयी युधिष्ठर की,

अब पांचाली को भी खोना था।।


मुझे हँसी इतनी भारी पड़ेगी,

द्रौपदी को ये अनुमान ना था।

दुःशासन की कामी नज़रों में,

स्त्री का कोई सम्मान ना था।।


असहाय द्रौपदी को बाल पकड़कर,

दुःशासन भरी सभा में लाया था।

जंघा पीटकर दुर्योधन ने,

अपना अधिकार जताया था।।


भीष्म की नज़रें झुकी हुई,

गुरु द्रोण भी कुछ ना बोले थे।

धृतराष्ट्र पागल था पुत्र मोह में,

दुःशासन ने लज्जा के पट खोले थे।।


आँखों में अश्रु लिए पांचाली ने,

सारी सभा को आज धिक्कारा था।

कोई नहीं उठा अस्मिता बचाने,

कान्हा को आज पुकारा था।।


लाज बचाने का वीणा,

त्रिलोकी ने खुद ही उठाया था।

रोती - बिलखती द्रौपदी को,

दर्शन देकर के ढांढस बंधाया था।।


भीष्म, द्रोण थे जो महान योद्धा,

लोग उनको साहसी कहते थे।

अबला नारी पर हुए अत्याचार से,

 खुद को कलंकित कर बैठे थे।।


इस अत्याचार की डोरी का,

एक सिरा कुरुक्षेत्र में था।

इस सारी घटना का वर्णन,

संजय के नेत्रों में था।।


जिस द्रौपदी ने भरी सभा में,

खून के आँसू रोए थे।

उसी द्रौपदी ने दुःशासन के रक्त से

आज अपने बाल धोए थे।।


एक तरफ कर्ण, दुर्योधन,

भीष्म, द्रोण जैसे महारथी थे।

दूसरी तरफ थे पांडव, द्रुपद,

त्रिलोकी जिनके सारथी थे।।


युद्ध शरू होने का बिगुल बजा,

अगले ही पल सब रण में थे।

सगे - संबंधियों को देखकर अर्जुन,

करुणा में बदले क्षण में थे।।


करुणा में देखके अर्जुन को,

श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश दिया था।

उनके ज्ञान को मन में भरकर,

पांडवों ने युद्ध को जीत लिया था।।


भीष्म पड़े थे बाणशय्या पर,

युद्ध - परिणाम के इंतज़ार में थे।

प्राण त्याग देते पहले ही वे,

पर सिंहासन के पड़े प्यार में थे।।


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