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दिल की व्यथा

दिल की व्यथा

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अपने मन की बात तुझसे कह रहे हैं,

पता है तेरे बिन हम कैसे जी रहे हैं..


मुझे खुद नही पता मैं कितना अभागा हूँ,

तमाम गांठों वाला मैं जिंदगी का धागा हूँ,

इस धागे को हम दर-बदर सीं रहे हैं,

पता है तेरे बिन हम कैसे जी रहे हैं...


तू ज़रूर खुश होगी अपने साजन की बाँहों में,

इधर मेरी सांसे अटकी हैं मंज़िल की राहों में,

इन सांसों को हम गिलास में पी रहे हैं,

पता है तेरे बिन हम कैसे जी रहे हैं...


अब कोई नही मुस्कुराने आता मेरे आँगन में,

अब वो बादल भी नही बरसते हैं सावन में,

अब ये मौसम भी मुझको दगा दे रहे है,

पता है तेरे बिन हम कैसे जी रहे है....


एक बार देख ले आकर मेरी आँखों का मंजर,

कैसे चुभ रहा है मेरे दिल में तेरे दिल का खंजर,

ये खंजर अब बेदर्दी हो रहे हैं,

पता है तेरे बिन हम कैसे जी रहे है...


हो सके तो मेरे दिल को आखिरी बार समझा देना,

कुछ रखे हैं बासे फूल इन्हें मेरी मैयत पे चढ़ा देना,

हम अपनी ज़िंदगी को दफन कर रहे हैं,

पता है तेरे बिन हम कैसे जी रहे है...


अपने मन की बात तुझसे कह रहे हैं,

पता है तेरे बिन हम कैसे जी रहे हैं...


[ © अनुज शाहजहाँपुरी ]


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