श्रद्धा सुमन
श्रद्धा सुमन
27 जून 1955 को शुरू किया मां पापा ने सफर,
संघर्षों से भरे थे वे दिन कठिन बड़ी अनजान डगर।
समय का पहिया घूमा आगे नाम मिला औ शोहरत भी,
धीरे धीरे वंश बढ़ा आए सब सुख साधन भी।
चार पुत्रियों के कलरव से गूंजा करता घर आंगन,
हंसी खुशी का दौर था यह महका करता था वह चमन।
कला पारखी मां ने हमको सच्चाई का पाठ पढ़ाया,
हुनर मिले थे हमको मां से पापा ने आत्म सम्मान सिखाया।
बहुमुखी प्रतिभा की धनी थी मां बुद्धि उनकी बड़ी प्रखर,
तेजस्वी व्यक्तित्व था उनका दिल एकदम ही निर्मल।
मां पिता के साये से वंचित पापा बेहद मेधावी थे,
दुलराते लड़ियाते हमको सच में ही दिलदार वे थे।
काल ग्रास ने छीन लिया असमय ही पापा को,
तीन दशक की अल्पावधि में एकाकी कर मां को।
फिर भी वर्ष बिताए मां ने हिम्मत धीरज धर कर,
चली गईं वह भी परलोक को बंधन सारे तज कर।
गर्व है मुझको मां पापा पर जिन्होंने हमको जन्म दिया,
बुद्धि पाई विरासत में और शिक्षा रुपी रत्न मिला।
आद्र नमन और द्रवित ह्रदय से याद उन्हें हम करते हैं
अगले जन्म में पुनः मिलें बस यही प्रार्थना करते हैं।
