वीरांगना
वीरांगना
युद्ध कहाँ कब भेद है करता
नर हो य़ा हो नारी
लड़े बराबर कर्म भूमि मे
दुश्मन हो कितना भी भारी
वर्दी तो ईमान धर्म है
सैनिक का भगवान
कर्म है देश की खातिर सांसें उसकी
देश का स्वाभिमान परम है
वर्दी कभी भी भेद न करती
औरत के ऊपर भी जंचती
देश प्रेम के धागे उसमे
हिम्मत की पहचान वो रखती
नारी जब भी कदम उठाये
देश की खातिर
वर्दी को अपना कवच बनाये
काली का विकराल रूप धर
दुश्मन का वो रक्त बहाये
अम्बर भी हर्शित हो जाये
बिटिया उसकी जब उडान लगाये
धरती उसके कदम भी चूमे
वर्दी पहन जब
जय हिन्द के वो गीत है गाये
सागर खुद उसके चरण पखेरे
लहरों से वो सैनिक खेले
चले युद्ध पोतों को ले जब
वार उसके
दुश्मन की मौत बन जायें
नारी खुद काली माता है
उसको कम किसने आंका है
रानी कभी तो कभी लच्छमी
युद्ध विजय से
गौरवानित उसका माथा है
हाथों मे बन्दूख उठाये
विज्यश्री का तिलक लगाये
जयकारा भारत माता का
होठों से ये उदघोष लगाये
कंधों से कंधे मिलाकर चलती
दुश्मन पर हैं वार वो करती
वीर सुपुत्री बन कर सैनिक
देश का वो नाम है करती
वर्दी उनकी शान बढ़ाये
देश भी उनका नाम है गाये
युद्ध भूमि बन कर्म भूमि मे
जीवन से वो लड़ भी जाये
मगर देश पर आँच न आये
चाहे प्राण भले ही जाये
झंडा यूँ ही ऊँची लहरें
भारत देश का मान न जाये
हर सैनिक की यही तमन्ना
देश की खातिर प्राण लुटाये
वर्दी का कोई मजहब नहीं होता
वर्दी का कोई रंग नहीं होता
पहन लेता है जब कोई सिपाही
वतन को फिर कोई खतरा नहीं रहता।