सोचना भी जरूरी है
सोचना भी जरूरी है
हाँ,
नही जाते सभी वृद्ध,
वृद्धाश्रम,
कुछ होते है घर मे भी,
पर नही होती वहां भी,
कोई सुकून भरी जिंदगी,
मिलता है जिन्हें,
तिरस्कार पल पल भी,
पर चलते रहते हैं,
उसी दर्द संग,
रोते सिसकते पल पल,
शायद बदले वह वक्त भी।
हाँ,
नही होते वो प्यार के घरौंदे उनके,
जो कभी उन्होंने सजाए थे,
बस,
रहता है एक मकान,
जहाँ पल पल,
रह जाता है,
तिरस्कार,अपमान।
पर क्यों,
दर्द सहते है वो वृद्ध भी,
जो आँचल की छाया,
देते रहे सदा,
सजाते,संवारते रहे सदा।
शायद,
नींव के वह पत्थर,
जिन्हें संस्कारो से सींचना जरूरी था,
सींच नही पाए हम,
बना दिया मैकाले की शिक्षानीति ने,
एक गुलाम,एक मशीन,
जो
समझ कर जन्मदाता को एक मशीन,
बस तिरस्कार दे जाते है।
शायद,
वृद्धाश्रम से ज्यादा,
आज संस्कारशालाये जरूरी है,
जो ढाल सके नवकोपलो को,
सुंदर सांचे में,
जिससे कोई पुत्र,
न ले जाये जन्मदाता को वृदाश्रम की ओर,
और न दे कोई तिरस्कार,
बुजुर्ग रहे सदा से,
एक आँचल की छाया,
जो सींचते रहे,
नव कोपले,
नव समाज बनाने को।।