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Arun Gode

Tragedy

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Arun Gode

Tragedy

संकल्प

संकल्प

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जितनी पुरानी हैं भारतीय संस्कृति, उससे भी पुरानी हैं मानव संस्कृति,

फिर भी हो रही मानवता के मूल्यों की अवनती, 

सहिष्णुता पे क्यों भारी हो गई असहिष्णुता,

क्या वजह है की आज भी वो शर्मसार करती ?

बुद्ध, अशोक, शिवाजी, तो कभी फुले,

कभी स्वामी पेरियार, तो कभी छत्रपती शाहु,

जिन्होंने लड़ी मानवी समानता की लड़ाई,

आज भी समाज से मिट नहीं पा रही,

ऊँच –नीच की मानव और मानव के बीच की खाई।

कुदरत नहीं करती किसी से कभी भी असमानता,

फिर मनुष्य-मनुष्य से क्यों करता भेदभाव और क्रूरता,

न्याय, समता, सहिष्णुता के अगर सभी होते हिमायती,

कल और आज ये समाज में नहीं होती विषमता,

अपमान, घृणा के अश्रु भीमा फिर कभी नहीं पीता।


अपमान और घृणा से जो आग भीमा में जली,

जिसके कारण भीमा के अरमानों की चढ़ी बली,

जिससे अमानवता नष्ट करने की प्रेरणा मिली,

मन और बुद्धि के समुद्र मंथन से निकली, शिक्षा,

संघर्ष, संघटित, सक्षम होने की कुँजी मिली।


बुद्ध ,अशोक ,शिवाजी, फुले, 

पेरियार शाहु, और भीम के कार्यों को,

करना हैं साकार आज लेकर संकल्प,

सभी समतावादियों को भीम जयंती को,

भारतवासी देंगे साथ मानवता कि धरोहर को जिंदा रखने को।


क्यों होना हैं हमें भीम संकल्पाई ?

क्योंकि ये है, समानता के शिव विचारों की लड़ाई,

क्योंकि ये क्रांति सूर्य फुले की शिक्षा की लड़ाई,

क्योंकि ये पेरियार कि ब्राम्हणशाहि मुक्ति की लड़ाई,

क्योंकि ये शाहु माहाराज के बहुजन आरक्षण की लड़ाई,

क्योंकि ये वैदिक मनु मुक्त विचारधारा की लड़ाई,

ऊँच -नीच, स्वर्ण- क्षुद्र के अंतर को मिटाने की लड़ाई।

छोड़ देना है वो सभी मृत रूढ़ि और परम्पराओं को,

वेद, पुराणों के मृत, अवैचारिक, अवैज्ञानिक अंशों को,

जो मिटा रहे अवैदिक भारतीय मानव सभ्यता को.

करना है नये स्थापित मानवता के मापदंडो को,

जो फिर से भारतीयों में पुनर्जीवित करे,

समानता, न्याय, सहिष्णुता, शांति, प्रगति के अवसरों को,

और साकार करें शिवाराजमुद्रा ‘विश्र्ववंदिता’ ‘ को।



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