"यह लेखनी आज भले कोई ना समझे कल के लिए धरोहर मैंने रख दिया !" "यह लेखनी आज भले कोई ना समझे कल के लिए धरोहर मैंने रख दिया !"
ऐसी होगी मेरी दीपावली इस बार ऐसी होगी हम सब की दीपावली इस बार। ऐसी होगी मेरी दीपावली इस बार ऐसी होगी हम सब की दीपावली इस बार।
भूमि का शृंगार तरु है; मिलकर नयी रवानी दें। भूमि का शृंगार तरु है; मिलकर नयी रवानी दें।
सीधा- सादा रहन -सहन खान -पान है, बेटी मेरी निश्चय ही गुणों की खान है। सीधा- सादा रहन -सहन खान -पान है, बेटी मेरी निश्चय ही गुणों की खान है।
जिंदगी गुजर जाती है रिश्तों की पोटली उठाने में। जिंदगी गुजर जाती है रिश्तों की पोटली उठाने में।
डायरियाँ तो इतिहास बनतीं हैं इसे हम ही समझते हैं ! साहित्य सृजन और उसकी सेवा कालांतर ... डायरियाँ तो इतिहास बनतीं हैं इसे हम ही समझते हैं ! साहित्य सृजन और उ...