मेरी डायरी मेरी सौतन
मेरी डायरी मेरी सौतन
इन डायरी
के पन्नों में
हम रोज
घिसी-पिटी
बातें दुहराते हैं !
कोई नयी
बातें इनमें
रहती नहीं,
सिर्फ हम
अपना इतिहास
बताते हैं !!
अब किसी
रचनाओं को
नए परिधानों
और श्रृंगारों में
सजा कर अपनी
दुल्हन बनाना
चाहता हूँ !
लोग देखे ,
निहारे गौर से
लालसा जग जाये
निरंतर
ऐसी बात
लाना चाहता हूँ !!
डायरियाँ तो
इतिहास बनतीं हैं
इसे हम ही समझते हैं !
साहित्य सृजन
और उसकी सेवा
कालांतर में
उसे याद करते हैं !!
महापुरुषों की डायरियों
को लोग धरोहर
मान लेते हैं !
सामान्य की बातें
कहें तो क्या कहें ?
उनकी डायरी कबाड़ी
झट से तौल लेते हैं !!
आज से
मेरी रचना ,
लेख ,
कविता
ही बनेंगी मेरी दुल्हन !
डायरी को त्याग देंगे ,
अब नहीं रहेगी मेरी
रचना की कोई सौतन !!