समय की डोरी
समय की डोरी
समय की डोर कच्ची होती है
दिखे नहीं इतनी बारीक सी होती है,
सौ सौ नाच नचा देती है
काठ के पुतले लोग सारे
उठते हैं गिरते हैं
तरह तरह के रूप
धर के नाटक करते हैं
और दुनिया का
रंगमंच सजाते हैं
समय के साथ
क़िरदार बदल जाते हैं
कहानी जारी रहती है
और जीवन बहता रहता है
समय का नियम जो
नियति-नियंता ने निर्धारित किया है
कैसे कैसे खेल दिखाता है
कठपुतलियां नचाता है।