समुद्र सा इज़हार
समुद्र सा इज़हार
समुंद्र की तरह बनूँ उदार
जब भी करूँ किसी से प्यार
उसकी निर्मलता रखूँ सहेज
जैसे मोती रहे समुद्र की सेज।
उसका अस्तित्व बनाऊँ विशाल
जैसे पाये नदिया सागर संग मेल
उसके अरमानों का बवंडर
बस जाए अब मेरे अंदर।
पूरी करूँ उसकी हर ख्वाहिश
समझ उसे अपने दिल की फरमाइश
रहूँ उस संग जीवन भर ऐसे
नदिया संग किनारा जैसे।
सूरज संग उजियारा जैसे।।