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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत - २३१ ;सुदर्शन और शंखचूड़ का उद्धार

श्रीमद्भागवत - २३१ ;सुदर्शन और शंखचूड़ का उद्धार

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श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित 

एक बार नंदबाबा और गोपों ने 

अम्बिकावन की यात्रा की और 

शंकर, अम्बिका की पूजा की उन्होंने। 


नन्द, सुनन्द आदि गोपों ने 

उपवास रखा और केवल जल पीकर 

बेखट के सो गए वो 

सरस्वती नदी के तटपर। 


उस अम्बिका वन में उस समय 

बड़ा भारी अजगर रहता था 

देववश वह उधर ही निकला 

नन्द जी को उसने पकड़ लिया। 


नन्द जी चिल्लाने लगे थे 

गोपों ने उठकर जब देखा ये 

कि नन्द जी अजगर के मुँह में पड़े हैं 

तब सभी घबरा गए वे। 


अधजली लकड़ियों से सारे 

अजगर को मार रहे वो 

परन्तु छोड़ा न अजगर ने 

कसकर पकड़ रखा था उनको। 


इतने में श्रीकृष्ण पहुंचे वहां 

छू लिया अजगर को चरणों से 

श्री कृष्ण का स्पर्श पाते ही 

सारे अशुभ भस्म हुए उसके। 


अजगर का शरीर छोड़कर 

सर्वांग सुंदर बन गया था वो 

भगवान् ने तब उससे पूछा 

‘ हे पुरुष, तुम कौन हो ? ।


अजगर की योनि क्यों प्राप्त हुई ? ‘

तब उस पुरुष ने बतलाया ये 

‘कि पहले मैं विद्याधर सुदर्शन था 

सौंदर्य और लक्ष्मी मेरे पास बहुत थे। 


इधर उधर घूमता रहता मैं 

एक दिन कुछ ऋषियों को देखा 

अंगिरा गौत्र के कुरूप ऋषि वे 

घमंड से उनपर मैं हंसने लगा। 


मेरे अपराध से कुपित हो 

उन लोगों ने मुझे शाप दिया 

कि अजगर की योनि में चला जा 

मेरे लिए तो ये अनुग्रह ही किया। 


इसी के प्रभाव से ही आपने 

स्पर्श किया मेरा चरणकमलों से 

मेरे सारे अशुभ नष्ट हुए 

अब अपने लोक में जाने की आज्ञा दें। 


कृष्ण की प्रक्रिमा की, प्रणाम किया 

अपने लोक में चला गया वो 

नन्द भारी संकट से छूट गए 

भारी विस्मय हुआ गोपों को। 


एक दिन कृष्ण और बलराम जी 

गोपियों संग विहार कर रहे 

सांयकाल का समय था और 

गोपिआँ उनके गुणों का गान करें। 


कृष्ण, बलरान उन्मत्त हो गाने लगे 

चांदनी छिटक रही वहां 

तभी शंखचूड़ नाम का 

एक यक्ष वहां आ गया। 


कुबेर का अनुचर था वो 

देखते देखते दोनों भाईयों के 

उत्तर की और भाग चला 

गोपियों के लेकर साथ में। 


गोपियाँ रोने चिल्लाने लगीं 

कृष्ण, बलराम ने जब देखा ये 

शाल वृक्ष लेकर दौड़े वो 

नीच यक्ष के पास पहुँच गए। 


काल और मृत्यु समझ दोनों को 

यक्ष बहुत घबरा गया था 

गोपियों को वहीँ छोड़कर 

जान बचने के लिए भागा। 


कृष्ण भी उसके पीछे भागे 

एक चूड़ामणि सिर पर थी उसके 

एक घूँसा मारा था सिर पर 

भगवान् ने जब पकड़ लिया उसे। 


चूड़ामणि के साथ उसका सिर भी 

अलग कर दिया उसके धड़ से 

चमकीली मणि शंखचूड़ से लेकर 

बलराम जी को दे दी उन्होंने।


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