STORYMIRROR

Rashmi Lata Mishra

Classics

3  

Rashmi Lata Mishra

Classics

शिक्षा की कीमत

शिक्षा की कीमत

1 min
404

शिक्षा की कीमत

बिकने वाले युग में

बिछी चहुँ ओर बिसात

ईमान, धर्म, इंसान बिके

शिक्षा की क्या औकात ?


गुरु शिष्य का पावन बंधन,

हुआ है तार-तार 

सिर्फ स्वार्थ की काली छाया,

घिर आई घर-द्वार।


पहले ट्युशन रूपी नोटों से,

खरीदने जाते डिग्री,

फिर डिग्री को गिरवी रख कर

हो जीवन यापन की तिकड़ी।


डिग्रियां भी रखी जाती हैं

देखो, अब तो रेहन।

कैसा आया जमाना,

और कैसा चला चलन।


पूरी तरह शिक्षा प्रणाली तो

 बन गई है व्यापार।

दानों, में श्रेष्ठ विद्यादान का,

 खूब लगा बाजार।


 पैसे से ही ज्ञान खरीदो

पैसे से व्यहार।

शिक्षा जगत का हो रहा,

ऐसे बंटाधार।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics