शौक़
शौक़
ज़िद भी तुम्हारी थी
शौक़ भी तुम्हारा था
हम तो हम भी न रहे
फिर क्या हमारा था
तुम्हें चाहते थे
तुम्हें पूजते थे
तुम्हें देखते थे
तुम्हें सोचते थे
चाहता का यह सिलसिला
बस क्या हमारा था
ज़िद भी तुम्हारी थी
शौक़ भी तुम्हारा था
हर पल हम साथ थे
अंधेरों से गुज़रते
उजाले भी साथ थे
चाँद जिस तरह आसमां में
उस तरह तुम पास थे
सितारों सा हमने भी
उस चांद को निहारा था
ज़िद भी तुम्हारी थी
शौक़ भी तुम्हारा था।