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Prachi Gaur

Romance

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Prachi Gaur

Romance

काबिल

काबिल

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कई अरसों बाद पता चला हम उनके काबिल न थे,

उनके वो पोशीदा इरादे मुनासिब न थे,. . . . .


तमाम वो वादे, वो कसमे, वो रस्मे, वो चाहत, वो उल्फत, वो जज़बात,

सब धोखा था और इस धोखे से हम वाकिफ़ न थे,. . . .


जिस्मो के तलब रखने वाले वो मियां,

महज़ ये एक, दो, तीन, दिल बहलाने वाले उनको काफी न थे,. . . . .


स'आदत से मिली उन्हें मोहब्बत,

पर वो फ़कत मोहब्बत के तालिब न थे,. . . . . .


न समझते हम उनकी मुश्ताकियां,

हम इतने भी जाहिल न थे।


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