एक हमसफ़र हो आईने की तरह
एक हमसफ़र हो आईने की तरह
उसे देखूं और
खुद को संवार लूं
एक हमसफ़र हो
आइने की तरह
कल कहूं और
आज तक याद रह जाए
एक बात हो
गज़ल की तरह
कहीं जाऊं और
उसका ही जिक्र करूं
हर एक शहर हो
बनारस की तरह
ढलती शाम के
फलसफे लिखूं हर रोज
एक जिंदगी हो
डायरी की तरह
जिससे मिलूं और
घुल सा जाऊं
एक रवानी हो
पानी की तरह
लहरों से बातें करूं
किनारे पे बैठकर
हर जगह हो
गंगा घाट की तरह
इधर सोचूं और
वो जान ले
एक खबरी हो
मन की तरह।

