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जागेश्वर सिंह 'ज़ख़्मी'

Abstract Tragedy Inspirational

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जागेश्वर सिंह 'ज़ख़्मी'

Abstract Tragedy Inspirational

तुम्हें मगर अच्छा लगना नहीं था

तुम्हें मगर अच्छा लगना नहीं था

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मैंने कहा था घर से चली जाती हैं एक दिन लड़कियाँ 

और कहा था समझदार बनो

खुद चली आओ तुम्हें मगर इतना समझदार बनना नहीं था 


मैंने तुम्हें रास्ता दिखाया और कहा था

 इससे जाया जा सकता है ऊंचाइयों की ओर

 तुम्हें मगर उस राह चलकर जाना नहीं था


मैं कहा करता था मुझे अच्छी लगती है 

अनसुलझे बालों वाली आदिवासी लड़कियां 

तुम्हें बिन सजे- सँवरे यूँ अच्छा लगना नहीं था। 


एक तरफ पूरी पक जाने पर पलट दी जाती है पनहत्थी रोटी 

रोटी की तरह मगर तुम्हें पलटना नहीं था। 


मैंने कहा था मैंने देखी है पहाड़ों पर लकड़ी ढोती स्त्री और उनकी बच्चियां 

तुम्हें मगर खुद इस तरह से दिखना नहीं था। 


तुमसे कितने अनमने मन से मैंने कहा था

मुझसे रहो तुम थोड़ी दूर 

दिखाई ना दो इतना दूर तुम्हें मगर जाना नहीं था 


मुझे वो लड़कियां बहुत अच्छी लगती हैं जो चलती है हँसिनी की चाल

पायल पहन कर भी जिनसे नहीं आती है छन-छन की आवाज

तुम्हें मगर खेत की मेड पर इस तरह चलना नहीं था। 


हां, कि हां, मुझे अच्छा लगता है 

मायके से आते जाते लोगों से

संदेश देने के बहाने मायके का लेना हाल-चाल द्वार पर बैठकर मगर तुम्हें इंतजार करना नहीं था। 


 मुझे पसंद है अरहर काटना ,जोन्हरी कोड़ना और खास घास मीचने जैसा काम

 तुम्हें मगर मेरे साथ हंसीया - कुदाल लेकर काम करना नहीं था। 


तुमसे वाबस्ता इस बात पर है कि 

असल में मैंने वही कहा था

जो मैंने चाहा था

तुम्हें मगर मेरे चाहने को चाहना नहीं था

       

             


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