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जागेश्वर सिंह 'ज़ख़्मी'

Romance

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जागेश्वर सिंह 'ज़ख़्मी'

Romance

इस उमर मे क्या समझते हो

इस उमर मे क्या समझते हो

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जब इधर- उधर का तुम नहीं समझते

तो फिर तुम इस उमर में क्या समझते हो


सुना है दिल्लगी का मौसम

चल रहा है शहर में 

किसी के साथ नहीं बैठते 

तो फिर क्या बैठते हो


तस्वीर देखना भी

मुलाकात सा लगता है

उसके प्रेम में बगल से नहीं गुजरते

तो फिर तुम क्या गुजरते हो


बहुत सोच के जाते हो

कि आज ये कहूंगा तुमसे

उससे कह पाने तुम नहीं लरजते

तो फिर क्या लरजते हो


बहुत सुंदर है उसके माथे पे बिंदी

इस बार पहनी है नये वाले झुमके

उसका हर श्रृंगार तुम्हारे लिए है

तुम ये नहीं देखते

तो फिर क्या देखते हो


बड़े काम आते है लट 

संवारने के बहाने तुम्हें ढूंढने में

अगर तुम ये नहीं महसूस करते 

तो फिर क्या महसूस करते हो


कितनी शिद्दत से चाहता है कोई तुम्हें

फिर भी कितना प्रेम करते हो ? 

तुम उनसे नहीं पूछते

तो फिर क्या पूछते हो? 


कमरे के कोने-कोने को पता है

उसके मैसेज आने के इंतजार के बारे में

 बाद उसके भी मन किताबों में नहीं लगता

तो फिर तुम्हारा मन कहाँ लगता है


जरा सी बात पर जानबूझ कर

 नाराज हो जाती है वो

 कैसे मनाऊं कशमकश में होते होगे

नहीं समझा पाने में खुद से नहीं झगड़ते

तो फिर तुम क्या झगड़ते हो


आदत न बन जाओ इसलिए

कुछ फासले दोनों ने रख छोड़े हैं

दूसरा कोई और नहीं जँचता 

फिर भी तुम उसे बहुत-बहुत नहीं चाहते 

तो फिर तुम क्या चाहते हो


बड़ी मशक्कत है यहाँ बसर करने में 

अब दिल को आराम तलब है 

और इधर उधर के हालात तुम नहीं समझते

तो फिर इस उमर में क्या समझते हो



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