शायद प्यार यही है
शायद प्यार यही है


दिल को लहू-लुहान करे
शायद प्यार यही है।
जीना क्या बस मरते रहें
शायद प्यार यही है।
सब कुछ पाने के चक्कर में
जाने कहाँ-कहाँ जाए,
खाली हाथ ही लौट चले
शायद प्यार यही है।
बादल बन के रहे उमड़ते
बस्ती-बस्ती, नगर-नगर,
प्यासी रेत में दम तोड़े
शायद प्यार यही है।
बंद पलक में सपने तेरे
खुली पलक की नाव समान
रुप नदी में डूबे रहें
शायद प्यार यही है।
हिरनों जैसे वन-वन भटके
लौट फिर बेबस
अपनी ही कस्तूरी खोजें
शायद प्यार यही है।