यादों का शहर
यादों का शहर
दिल तड़प-तड़प कर रोया कई बार
मोहब्बत निभाते हुए,
अजीब सा लगता है, उसे अब अपना
इश्क़ जताते हुए।
कभी रो लिया करती थी दिल खोलकर,
अब गला भर आता है, आँसू छुपाते हुए।
कहते थे "मर जाएंगे तुमसे बिछड़े तो"
एक बार पलट कर भी ना देखा उसने जाते हुए।
दिन-रात करते ना थकते थे
वो अपने मोहब्बत का इज़हार,
अब वही इश्क़ जताते है
किसी और का हाथ थामे हुए।
इतना आसान होता है क्या भूल पाना सब कुछ,
कई दिन-रात, महीने-साल लग गये
हमें अपना यादों का शहर जलाते हुए।