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Baman Chandra Dixit

Romance

4  

Baman Chandra Dixit

Romance

पानी में तू

पानी में तू

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ज्यों उतरी पानी में तू

लपेट कर लिबासों को

तुझे देख समंदर भी

शर्म से पानी पानी हो गया।।

तीखी तेरी जवानी पे

नमकीन चाशनी की घोल

देख कर दिमाग गोल

हलक पे जाँ अटक गया।।

बूँद बूँद टपकता पानी

ज़ाम हुस्न की छलक जैसी।

मदहोश कोई आशिक और

कोई हाथ मलता रह गया।।

ना झटको ज़ुल्फ़ों को यूं

छींटें भी कातिलाना बड़ी

घायल नज़रों की तो छोड़ो

सीने में चाकू चल गया।।

कहाँ खो गया था मैं

पता न चला मुझे

चली तू जा रही थी देख

होश मेरा उड़ गया।।



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