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Rochana Singh

Abstract Others

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Rochana Singh

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जिन्दगी कैसी है पहेली

जिन्दगी कैसी है पहेली

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जिन्दगी तू ग़म तो नहीं,

फिर भी डर लगता है

ज़हर बनकर कहीं न

डस तू जीवन को।

जो कभी सोचा ना था,

वो भी होता है।


कितने रंग हैं, कितने ढंग है,

कभी खुशी है तो कभी ग़म है।

कभी सपने आते हैं,

कभी नींद जाती है

तेरी दुनिया कुछ निराली है।

हर व्यक्ति का मन कुछ खाली है।

शायद अकेले होने का कुछ तकाजा है,

बचपन में कौन इतना सोचता है।


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