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Prakash Singh Patel

Romance Fantasy

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Prakash Singh Patel

Romance Fantasy

" शायद मुझे भी प्यार हो रहा था

" शायद मुझे भी प्यार हो रहा था

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न जाने क्यों आज सूरज 

देर से उगने वाला था

शायद मेरी किस्मत का ताला 

जो खुलने वाला था


जब वो कॉलेज में आयी थी

मुझे एक अहसास हो रहा था

न जाने क्यों उस लड़की 

से इकरार हो रहा था

शायद मुझे भी प्यार हो रहा था।


उसकी आँखें और स्माइल देखकर 

उसको बार बार देखने के लिए 

मैं इस कदर बेकरार हो रहा था

शायद मुझे भी प्यार हो रहा था।


मेरी दुआ शायद कबूल कर ली खुदा ने

और दोस्ती करने के लिए 

उसे मेरे पास बुलाया था

उससे दोस्ती करने के बाद न जाने क्यों

मेरा दिल दिलदार हो रहा था

शायद मुझे भी प्यार हो रहा था 


जब भी वह कभी गलती से

मुझे भईया कह देती थी

तो वह गुस्सा दिला देती थी

लेकिन लड़की मन की बहुत अच्छी थी

तुरंत सॉरी कहकर मुझे मना लेती थी


कभी उदास होता था तो

मैं अकेले बैठा करता था 

मुझे अकेला देखकर मुझे

स्माइल कराने के लिए

मुझे मनाने के लिए 

चॉकलेट भी लाया करती थी

इसलिये मुझे उस पर एतबार हो रहा था

शायद मुझे भी प्यार हो रहा था


दोस्त तो बन गयी अब उससे

फ़ोन बात कैसे करूँ

अपने प्यार का इजहार कैसे करूँ

यही सोच रहा था की उसका 

message आया था

उस दिन में बहुत मुस्कुराया था

उस दिन ऐसा लग रहा था

जैसे धरती को बारिश की बूंदों 

का अहसास हो गया था

मेरा मन भी गार्डन गार्डन हो रहा था

शायद मुझे भी प्यार हो रहा था



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