चाँद तारों की बातें
चाँद तारों की बातें
वह उसके प्रेम में थी....
प्रेम तो प्रेम होता है....
अपरिमित....
हिमालय से ऊँचा....
आसमाँ जैसा विशाल.....
उस प्रेम में कई सारे वादे थे...
चाँद के पार ले जाने के वादे....
रंगबिरंगी चूड़ियों के वादे...
सोने के झुमकों के वादे...
और भी इस तरह के ढेर से वादे...
उन वादों से प्रेम बढ़ता ही गया...
मन से मन का प्रेम....
वह अँधा प्रेम.....
मन का प्रेम अब तन के प्रेम में बदल गया....
दिन बढ़ते गये....
और प्रेम बढ़ता गया...
प्रेमिल लड़की के अंदर अंकुर फूटने का अहसास हुआ....
एक नयी जिंदगी....
इस नये अहसास से वह जैसे सातवें आसमाँ में उड़ने लगी....
प्रेमिल लड़की मचलनेे लगी...
प्रेमी को 'नयी जिंदगी' की ख़बर देने के लिए..…
लेकिन यह क्या?
प्रेमी महाशय को जैसे काठ मार गया....
प्रेमिल लड़की की तरह प्रेमी महाशय को खुश नहीं हुये....
बल्कि उनके होश ही गुम हो गये...
फिर आने का वादा कर प्रेमी महाशय चले गये....
निकलते दिनों के साथ प्रेमी महाशय के दर्शन कम होते गये...
घर ढूँढते ढूँढते...
आख़िर वह प्रेमिल लड़की महीनों बाद प्रेमी के घर पहुँची....
लेकिन यह क्या?
चाँद तारों की बातें करनेवाले प्रेमी ने पहचानने से इनकार किया....
वह सारे वादे...
और सारे इरादे....
जमीं पर बिखर से गए....
अब वह कहाँ जाये?
क्योंकि वापसी के रास्ते तो वह बंद करके आयी थी....
आस पड़ोस के लोग झाँकने लगे...
औरतों में खुसुर पुसुर होने लगी....
किसे फ़र्क़ पड़ता भला?
वह प्रेमिल लड़की चार दिन उस घर की चौखट पर पड़ी रही....
अब वह जान चुकी थी...
अब न वहाँ प्रेम था....
न प्रेमी था...
न कोई वादे थे....
और न कोई एतबार भी....