आशिकी पनपती रही
आशिकी पनपती रही
हमने संभाला बहुत अपने दिल को
मगर ये दिल बहकता चला जा रहा है
चलो दिल में आशिकी पनपती रही
मगर इश्क का खुमार चढ़ता जा रहा है
हर शाम उसका इंतज़ार करती है
वही चारों धाम में रहती है
मसीहा बनाया अपना हमनवां मानकर
तुझको संग लेके ये दीवाना चलता जा रहा है
अब मुझे चाँदनी भाती नही
तेरे चेहरे की दूधिया रंगत के आगे
तेरे होंठ कपकपाते रहे
मेरे होंठ तक करीब आते-आते
आँखों में तेरी अपना चेहरा जब से है देखा
तुझे आईना बनाकर ये आशिक चला जा रहा है
मुझको उनकी मोहब्बत है जायज लगी
उनकी सारी कसमें मुझे वाजिब लगीं
तुझे अपने करीब छुपा के रख लूँ सनम
तुझे सबसे बचाता ये दीवाना चला जा रहा है।