" मेरा मन "
" मेरा मन "
ये उन दिनों की बात है
जब मैं कॉलेज जाया करता था
पैसे बचाने के लिए ऑटो से न जाकर
पैदल जाया करता था
और लौटते वक़्त कभी कभी
समोसे भी खाया करता था।
इसमें मेरे मित्र भी
साथ निभाते थे क्योंकि
हम पैदल जो जाते थे।
फिर एक दिन ऐसा आया
मेरे मन को एक आनन भाया
मेरे मानस में उसकी तस्वीर छपने लगी
जाने क्यों मेरी हृदय की धड़कन बढ़ने लगी।
मेरा मन उससे दोस्ती करने को आतुर था
उसकी हँसी ऐसी लगती है
मानो हर जख्म की दवा लगती है।
मेरा मन उसके चेहरे को
ऐसे दिखाता है
जैसे भँवरा फूलो के पास
खिंचा चला जाता है।
उसका मन भी इतना साफ था
जैसे मिनरल वाटर होता है
और उसे देख कर मेरा मन
कभी जागता कभी सोता है।
मैं उसको बताना चाहता था की
मैं आपसे दोस्ती करना चाहता हूँ
और आपसे इस दोस्ती का जवाब चाहता हूँ
पर उसकी मुस्कुराहट को देखकर
चुप सा रह जाता हूँ
और मन ही मन मुस्काता हूँ
लेकिन कभी कभी सोचता हूँ की
क्या वो मेरे से दोस्ती करना चाहेगी
मेरा मन भी मुझे यही समझाता है
की सब्र कर थोड़ा जल्दबाजी मत कर
तेरी सच्ची मेहनत जरूर रंग लाएगी
और एक दिन वो जरूर
तेरी ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाएगी।

