एक बार ही जी भर के सज़ा क्यूँ नहीं देते?
एक बार ही जी भर के सज़ा क्यूँ नहीं देते?
एक बार ही जी भर के सज़ा क्यूँ नहीं देते?
मैं हर्फ़-ए-खता हूँ तो मिटा क्यूँ नहीं देते?
जब प्यार नहीं है तो भुला क्यों नहीं देते?
ख़त किस लिए रखे हैं जला क्यों नहीं देते?
मोती हूँ तो दामन में पिरो लो मुझे अपने,
आँसू हूँ तो पलकों से गिरा क्यूँ नहीं देते?
लिल्लाह शब-ओ-रोज़ की उलझन से निकालो
तुम मेरे नहीं हो तो बता क्यों नहीं देते?
अब शिद्दते ग़म से मेरा दम घुटने लगा है
तुम रेशमी ज़ुल्फों की हवा क्यों नहीं देते
रह रह के न तड़पाओ ऐ बेदर्द मसीहा
हाथों से मुझे ज़हर पिला क्यों नहीं देते ?
जब मेरी वफाओं पे यकीं तुमको नहीं है
तो मुझको निगाहों से गिरा क्यों नहीं देते?
साया हूँ तो साथ ना रखने का सबब क्या 'फ़राज़',
पत्थर हूँ तो रास्ते से हटा क्यूँ नहीं देते?