सुर्ख़ फूलों में छुप गया था मैं
सुर्ख़ फूलों में छुप गया था मैं
सुर्ख़ फूलों में छुप गया था मैं,
सिर्फ़ होने को लापता था मैं।
वक़्त ने धूल चटा दी वरना,
इक ज़माने में सूरमा था मैं।
हाथ मलने से पेशतर सोचा,
आप के हाथ चूमता था मैं।
कुछ बदन देख कर लगा ये भी,
ये किताबें तो पढ़ चुका था मैं।
सनसनी भी न कर सका पैदा,
एक मामूली हादसा था मैं।
तुम दरीचों पे तंज़ करते रहे,
धूप के ऐब जानता था मैं।
मुझपे नाज़िल है एक ख़ामोशी,
एक आवाज़ से ख़फ़ा था मैं।

