तुम मेरी ख़्वाब नहीं हकीक़त हो !
तुम मेरी ख़्वाब नहीं हकीक़त हो !
हे ! प्रेयसी तुम मेरी ख़्वाब नहीं, हकीक़त हो ।
मुझे तुम्हें याद करने की जरूरत नहीं!
क्यूंकि तुम अविस्मरणीय स्मरण बन के मुझे याद हो ।
मुझे तुम्हें साथ देने की जरूरत नहीं!
क्यूंकि तुम सदा मेरे साथ हो साये की तरह ।
तुम हमसे दूर कहाँ हो ? तुम बाहर भी नहीं हो ।
तुम तो मेरे अंदर अंतरात्मा बन मेरी आवाज़ हो ।
तुम कोई ख़्वाब नहीं ! तुम मेरी हकीक़त हो ।
तुम मेरी सपना नहीं !तुम तो मेरी अपना हो ।
मुझे तेरी जरूरत नहीं । तुम मेरी जरूरत हो ।
तुम मेरी साँस नहीं ,तुम मेरी धड़कन हो ।
जिसमें देखकर खुद को सँवारूं वैसी अनोखी दर्पण हो ।।

