कुछ नज्म़ इश्क की
कुछ नज्म़ इश्क की
अपनी फुर्सत में थोड़ी सी फुर्सत,
फुर्सत से हमारे लिए भी निकाल लिया करो !
कल को कहीं कुछ ऐसा न हो कि तुम फुर्सत निकालो हमारे लिए
और हम फिजां से ही फरार हो जाएं।।
तुम मुझे हराकर जीत नहीं सकते और मैं जीतकर भी हार जाऊँगा ।
इसलिए बेहतर है हमारा मुकाबला बराबरी पर समाप्त हो जाए। ।।
कल तक जो जोहते थे मेरा आसरा !
डूबते ही नैया मेरी वो तलाश हो गए।
टूटते ही तारा वो अपरिमित आकाश हो गए।
ढूंढ रहें हैं किसे हम, जो अपने थे न जाने कहाँ छिप गए
अब गैर ही मेरे दिल के पास हो गए ।।

