सड़क पर बचपन
सड़क पर बचपन
कल जा रहा था अपनी राह
सहसा नजर पड़ी सड़क के किनारे
एक बालक गाड़ी का शीशा पकड़
कुछ मांगता हुआ गिड़गिड़ा रहा था
पूछा क्यों तुम रोज भीख मांगते हो
लोगों के आगे क्यों गिड़गिड़ाते हो
समझ नहीं पाया मेरी बातों को
सर अपना खुजलाया और फिर बोला
दे दो न साहब क्यों बातें बनाते हो
मैंने कहा सुनो एक बात मेरी
मुझे बताओ क्या तुम्हारी मज़बूरी है
क्यों पढ़ने नहीं जाते हो रोज यहीं सड़क पर मिल जाते हो
साहब स्कूल जाऊँगा तो रोटी कैसे खाऊंगा
माँ की दवा कहाँ से लाऊंगा
बाबा के पैरों का इलाज कैसे करवाऊंगा
रोज कुछ मिलता है तब सबका पेट भरता है
पढ़ना मुझे भी अच्छा लगता है
मन में सोचता हूँ मैं भी स्कूल जाऊँगा
बस्ता अपना रोज मैं सजाऊंगा
पर घर की हालत देख घबराता हूँ
इसलिए रोज सड़क पर आ जाता हूँ
बातें उसकी सुन दिल मेरा रोया था
उस बच्चे ने ओर न जाने कितने ही बच्चों ने
सड़कों पर अपना बचपन बिताया था
वो पल आज याद करता हूँ
तो दिल घबरा जाता है
इनकी मदद करने इंसान कभी-कभी
ईश्वर बन जाता है III