सच तो ... !
सच तो ... !
सच तो गिरवी रख आये हैं,
झूठ से दुनिया चलती है।
शब्द हैं उनके लूले - लंगड़े,
कान हमारे बहरे हैं।।
रोज़ सड़क पर,चौराहों पर,
देश की अस्मत बिकती है।
गाँव की गोरी अब तो पल-छिन,
तन-मन-धन से लुटती है।।
इस घर के दर दीवारों पर,
बहुत ही कठिन पहरे हैं।
सच तो ...।।
सोर्स, बोफोर्स, हवाला-प्याला,
मानो हर घर हो मधुशाला।
सदाचार खर्राटा मारे,
भ्रष्टाचार का अब बोलबाला।।
गिरगिट जैसा घड़ी घड़ी में,
इंसा रंग बदलता है।
सच तो ...।।
छोड़ो वेद, बाइबिल, गीता,
अब तो सिकंदर वही जो जीता।
कर्म करेगा पछतायेगा,
अब तो तेल लगाओ मीता।।
सतयुग कलियुग बहुत सुन लिए,
घोटाला -युग आया है।
सच तो ...।।
आयातित होती मर्यादा,
मैडम बन गईं कल की राधा।
सूख रहा आँखों का पानी,
सच के आगे पग-पग बाधा।।
चलो 'प्रफुल्ल' तुम बहुत जी लिए,
झूठ की अब महामारी है।
सच तो ....।।