सब कठपुतली
सब कठपुतली
वह चलता रहा जीवन में
एक कुशल योद्धा की तरह
चलाता रहा सबकी बागडोर
अपने इशारों में I
जैसे महाभारत विजयी पार्थ
अपने पूर्णता पर इतराते
अपने फसल को पककर
जैसे बटोरते हुए किसान
जिसकी क़ीमत औरों के हाथ
समस्या से निजात पाने का
उसका एहसास
एक मजदूर का शाम होते देख
एक ठंडी आह
पर उसके आडम्बर
किसी और के हाथ
कोई इसे विधि तो कोई
किस्मत कहता है
सब के सब एक डोर से बंधे
कौन किसके हाथ की कठपुतली
ये कोई नहीं जानता
